लेखनी कविता - गज़ल
चेहरे की धूप की गहराई ले गए|
आईना सारे शहर की बीनाई ले गए|
डूबे जहाज पे क्या तब्सरा करें,
ये हादसा तो सोच की गहराई में ले गया|
हालांकि बेज़ुबान था लेकिन अजीब था,
जो शख़्स मुझ से छीन के गोयाई ले गए|
इस वक्त तो मैं घर से मर जाऊंगा न पाऊंगा,
बस एक कमी थी जो मेरा भाई ले गया|
लबरसीदे को उस की शान में लिखा गया,
जो आर्टिकल से पूरी हुई सच्चाई ले गए|
यादों की एक मेरे साथ छोड़ कर,
क्या जाने वो मेरी तन्हाई ले गया|
अब असद तुम्हारे लिए कुछ नहीं हो रहा है,
लेन-देन के सभी संगणक ले गए|
अब तो फ़िज़ अपनी साँसें भी लग रही हैं बदहज़मी सी,
उमरों का देव सब तवनाई ले गए|"